प्रश्न - ओशो, मेरी कामवासना नहीं जाती। क्या करूँ ?
- हरिकृष्णदास ब्रम्हचारी
ब्रम्हचर्य के कारण नहीं जाती होगी। वासना गई नहीं, और ब्रम्हचारी तुम कैसे हो गए? लेकिन लोग उल्टे कामों में लगे हैं। पहले ब्रम्हचर्य की कसमें खाते हैं फिर वासना को हटाने में लगते हैं। ऐसे नहीं होगा। ऐसा जीवन का नियम नहीं है। तुम जीवन के विपरीत चलोगे तो हारोगे, दुख पाओगे। और तुम एक मूर्छा में जाओगे।
अब तुम मान रहे हो कि मैं ब्रम्हचारी हूँ। कसम खा ली है तो ब्रम्हचारी हूँ। मगर कसमों से कहीं मिटता है कुछ? कसमों से कहीं कुछ रूपांतरित होता है? अब ऊपर-ऊपर ढोंग करोगे पाखण्ड का, ब्रम्हचर्य का झंडा लिए घूमोगे, और भीतर? भीतर ठीक इससे विपरीत स्थिति होगी। यह दुनिया बड़ी विचित्र है, हरिकृष्णदास ब्रम्हचारी।
पहली बात तो यह समझ लो कि इस ब्रम्हचर्य को जाने दो-यह दो कौड़ी का ब्रम्हचर्य। लेकिन अहंकार इस तरह की सजावटें पसंद करता है। एक दिन जिज्ञासु खट्टमल ने दादाजी चूहड़मल फूहड़मल से पूछा कि दादा, मेरा बेटा मुझे परेशान किए हुए है, बार बार पूछता है और मैं उत्तर नहीं दे पाता।
पूछो पूछो। अरे जिज्ञासा न करोगे तो ज्ञान कैसे होगा? खट्टमल बोले, मेरा बेटा मुझसे पूछता है कि पाजामा एक वचन है या बहुवचन? दादा कुछ सोचे, आँखें बंद कर के धारणा साधी, धारणा से ध्यान मजबूत किया, ध्यान से समाधि मजबूत की फिर बोले, बच्चा, उपर से एक वचन और नीचे से बहुवचन।
ज्ञानियों से बचो, किसी ज्ञानी के चक्कर में पड़े हो। नहीं तो ब्रम्हचारी कैसे हो गए तुम? पहले तो कामवासना जानी चाहिए, फिर ब्रम्हचर्य अपने आप आ जाएगा, लाना तो नहीं पड़ता है। मगर कोई ज्ञानी का सत्संग कर रहे हो, उसने तुम्हें उलझन में डाल दिया, फांसी लगा दी।
... कामवासना जीवन की एक अनिवार्यता है, अनुभव से जाएगी, कसमों से नहीं, ध्यान से जाएगी, व्रत नियम से नहीं। छोड़ना चाहोगे, कभी न छोड़ पाओगे, और जकड़ते चले जाओगे। इसलिए पहली तो बात, यह छोड़ने की धारणा छोड़ दो। जो ईश्वर ने दिया है, दिया है। और दिया है तो कुछ राज होगा। इतनी जल्दी न करो छोड़ने की, कहीं ऐसा न हो कि कुंजी फेंक बैठो और फिर ताला न खुले।
कामवासना कोई पाप तो नहीं अगर पाप होती तो तुम न होते पाप होती तो ऋषि-मुनि न होते। पाप होती तो बुद्ध महावीर न होते। पाप से बुद्ध और महावीर कैसे पैदा हो सकते हैं? पाप से कृष्ण और कबीर कैसे पैदा हो सकते हैं? और जिससे कृष्ण, बुद्ध और महावीर, नानक और फरीद पैदा होते हों, उसे तुम पाप कहोगे? जरूर देखने में कहीं चूक है, कहीं भुल है।
कामवासना तो जीवन का स्रोत है। उससे ही लड़ोगे तो आत्मघाती हो जाओगे। लड़ो मत, समझो। भागो मत, जागो। मैं नहीं कहता कि कामवासना छोड़नी है, मैं तो कहता हूँ कि समझनी है, पहचाननी है। और एक चमत्कार घटित होता है, जितना ही समझोगे उतनी ही क्षीण हो जाएगी, क्योंकि कामवासना का अंतिम काम पूरा हो जाएगा। कामवासना का अंतिम काम है तुम्हें आत्म-साक्षात्कार करवा देना।
कामवासना को समझो।यह भजन गाने से नहीं जाएगी, उससे जूते पड़ जाएंगे आदमी अपने ही हाथ से पिटता है, खुद को ही पीटता है। थोडा सजग होओ, थोड़ी बुद्धिमता का उपयोग करो।
कामवासना बड़ा रहस्य है जीवन का, सबसे बड़ा रहस्य। उसके पार बस एक ही रहस्य है - परमात्मा का। इसलिए मैं कहता हूँ, जीवन में दो रहस्य है - एक संभोग का और एक समाधि का। तीसरा कोई रहस्य नहीं है। संभोग ने तुम्हें जीवन दिया है और समाधि तुम्हें नया जीवन देगी। संभोग ने तुम्हें देह का जीवन दिया है, समाधि तुम्हें आत्मा का जीवन देगी।
- ओशो, सहज आशिकी नाहिं
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