कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) से एक नौजवान मुंबई में कुछ करने आया तो था लेकिन उसमें मायानगरी का इंद्रधनुषी फिल्मोद्योग शामिल न था। श्यामल के. मिश्रा इस चकाचौंध से अलग ही रखना चाहते थे। पर होना तो कुछ और था विपुल शाह की फिल्म "आँँखें" में निर्देशक को एक सहायक की आवश्यकता थी। बस बहाल हो गए श्यामल। ना ना करते यह प्यार इतना प्रगाढ़ होता गया कि हँसते हँसाते दस वर्ष कब निकल गये, पता ही नहीं चला। इसके बाद श्यामल का मन अपने मन की करने को बेचैैन रहने लगा।
बाद में फिल्मों का जुगाड़ तो नहीं जमा , हाँ टेलीविजन पर व्यस्त हो गए । दूरदर्शन के लिए "संकट मोचन हनुमान" धारावाहिक स्वतंत्र निर्देशक के रूप में किया। फिर आस्था हेतु "जय जय जय बजरंगबली" की भी कमान संभाली। किंतु उन्होंने फिल्मो से शुरुआत की थी इसीलिए पुनः फिल्मों में वापस हो चले। उन्होंने पहली फिल्म बनायी "रेेशम डंक" जो सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही प्रदर्शित हो पायी। अब श्यामल अपनी दूसरी फिल्म "क्रिना" को लेकर चर्चा में हैं।
"क्रिना" कबायली क्षेत्रों की कहानी है। एक क्षेत्र का सरदार आतातायी है, जो लोगों की ज़िंदगी नर्क बनाए हुए है। क्रिना निर्वासित जीवन जी रहा एक किशोर है। घटनाक्रम कुछ ऐसा चक्कर खाता है कि वह अपने कबीले में वापस आता है। अपने क्षेत्र की दुर्दशा, लोगोंं का नारकीय जीवन देख कर वह द्रवित हो उठता है। फिर पता चलता है कि उसके माता पिता जीवित हैं और कबीले के कमीने सरदार की क़ैैैद में हैं।
क्रिना माता का भक्त है। वह मां से शक्ति मांगता है, उसकी प्रार्थना स्वीकार होती है और विशिष्ट शक्ति प्राप्त कर क्रिना दुष्ट सरदार का अंत करता है ।
श्यामल बताते हैं ' क्रिना का पात्र पार्थ सिंह चौहान ने निभाया है । नया होते हुए भी उसने बड़ा ही सुलझा और सधा हुआ काम किया है। मुझे खुशी इस बात की है कि उसने मेरे हर निर्देश/इशारे को बड़ी बारीकी से सीखा/समझा और क्रिना को जीवंत कर दिया।
फिल्म में सुदेश बेरी और शाहबाज खान दो अलग अलग कबीले के सरदार हैं। सुदेश जहाँ सहृदय हैं और क्रिना को आश्रय देते हैं तो शाहबाज आतातायी हैं। सुधा चंद्रन वह पहली स्त्री हैं जो विरोध का स्वर बुलंद करती हैं लेकिन, मारी जाती हैं। दीपशिखा और दिवंगत इंदर कुमार क्रिना के माता पिता के रूप में हैं जो शाहबाज खान की कै़द में हैं। तुनिषा शर्मा वह लड़की है, जो क्रिना की मदद करती है। वह सुदेश बेरी की बेटी है और क्रिना से प्रेम करती है ।
मेरी फिल्म में दिलीप सेन ने लंबे अर्से बाद संगीत दिया है और बड़ा ही अच्छा कर्णप्रिय धुनें बनाई है। फिल्म एक्शन वाली है और भरपूर एक्शन है। आर. पी. यादव का एक्शन शानदार है। लेकिन, संंगीत का योगदान बेहतर है।
श्यामल कहते आगे कहते हैं ' मैं निर्माता हरविंद सिंह चौहान को कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ कि उन्होंने मुझे इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी। मुझ पर भरोसा जताया। सज्जन पुरुष हैं और भाई की तरह सहयोग, सलाह करते रहे, हर तरह की सुविधाएं मुहैया कराये ।
आपको बता दूं कि बॉलीवुड में मैं रोहित शेट्टी से बेहद प्रभावित हूँ , वे मल्टी टैलेंटेड डायरेक्टर हैं। जितनी अच्छी उनकी एक्शन फिल्में होती हैं, उतनी ही कॉमेडी भी। मैं उनकी मेकिंग, स्टोरी टेलिंग और नैरेशन का कायल हूँ।
- संतोष साहू
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