जो डर गया समझो मर गया ' यह शोले फ़िल्म में गब्बरसिंह द्वारा बोला गया मशहूर डायलॉग भयानक डरावनी फिल्मों पर फिट बैठता है । हॉरर फिल्मों का एक अलग दर्शक वर्ग हमेशा रोमांचित मूड में रहता है । डर का भाव पैदा करने में हॉलीवुड के फिल्मकार की कोई सानी नहीं है । भारतीय फिल्मकार भी यहाँ की अप्रत्याशित वास्तविक घटनाओं , भटकती आत्माओं , भूत प्रेतों की कहानियों को किसी फिल्म में बड़े ही रोचक ढंग से पेश कर पाते हैं ।
वह डर , डर ही क्या जिससे रोंगटे खड़े ना हो । डरावनी फिल्मों की सबसे बड़ी यू एस पी होती है किसी भूतिया किरदार का मेकअप और ध्वनि संयोजन ।
वैसे तो अंधेरा देखकर इंसान घबरा ही जाता है ।
थियेटर में बैठा दर्शक जब कोई हॉरर फिल्म देख रहा होता है तभी अचानक पर्दे पर विशेष ध्वनि के साथ कोई भयानक चेहरा उभरकर सामने आए तो भयवश दिल की धड़कन बढ़ ही जाती है और पसीने भी छूट जाती है ।
फन इंटरटेनमेंट की प्रस्तुति निर्माता हनवंत खत्री और ललित किरी की प्रभुराज निर्देशित हॉरर फिल्म ' लुप्त ' एक तड़पती आत्मा की प्रतिशोध की कहानी है ।
फ़िल्म में हर्ष टंडन ( जावेद जाफरी ) एक बड़ा व्यवसायी है जो अपनी व्यस्तता के कारण परिवार को समय नही दे पाता । उसकी पत्नी शालिनी ( निकी वालिया ) , बेटी तनु ( मीनाक्षी दीक्षित ) और बेटा समीर उर्फ सैम ऋषभ चड्ढा चाहते हैं कि हर्ष कभी उन्हें छुट्टी निकालकर घुमाने ले जाये ।
हर्ष को कभी कभी अचानक कोई साया होने का आभास होता है । जब वह इसका जिक्र अपनी सायकायट्रिस्ट दोस्त विद्या से करता है तो उसे लंबा आराम की सलाह देती है ।
विद्या की बात मानकर हर्ष अपने परिवार और होने वाले दामाद फैशन फोटोग्राफर राहुल सक्सेना ( करण आनंद ) के साथ लखनऊ से नैनीताल निकलता है ।
मुख्य मार्ग पर ट्रैफिक जाम की वजह से हर्ष अपनी गाड़ी जंगल के रास्ते घुमा लेता है ।
सफर में रात होती है और उन्हें बीच रास्ते में एक बंद पड़ी गाड़ी के पास अजनबी ( विजय राज ) उनसे सहायता मांगता है लेकिन उसे निराश होना पड़ता है ।
आगे बीच रास्ते पर हर्ष को एक बच्चे की गाड़ी दिखती है जिसमें एक पुतला होता है , सैम उस पुतले को किनारे फेंकता है ।
आगे सुनसान सड़क पर उनकी गाड़ी बंद हो जाती तब अजनबी अपनी गाड़ी ठीककर पहुंचता है और उन्हें अपने आउट हाउस में ले जाता है । आउट हाउस में सैम को फिर से सड़क पर दिखा हुआ पुतला दिखता है तो डर जाता है , उसके परिवार वाले उसकी शरारत समझते हैं ।
सैम अपने पिता हर्ष की नाराजगी की वजह से आउट हाउस के बाहर सड़क पर आ जाता है जहां उसे वही पुतले की गाड़ी दिखती है , वह उसके पीछे जाता है और उसका सामना एक बच्ची की आत्मा और स्त्री के आत्मा से होता है , यह डर उसकी जान ले लेती है और बाद में उसकी माँ भी सदमे में आकर दम तोड़ देती है ।
हर्ष इस मौत का जिम्मेदार अजनबी को मानता है लेकिन वह अजनबी भूत प्रेत पर रिसर्च करने वाला लेखक देव शुक्ला होता है जो खुद इन सब बातों को अंध विश्वास मानता रहता है ।
हर्ष को अपनी अतीत की गलती का एहसास होता है कि वह भयानक आत्मा कौन है जो उसके परिवार के जान की दुश्मन बन बैठी है ।
अंत में क्या वह आत्मा अपना बदला ले पाती है ? इसे जानने के लिए एक बार फ़िल्म देखने का मन बना सकते हैं ।
फ़िल्म के सभी कलाकार अपनी भूमिका में जमे हैं । जावेद जाफरी पर अमिताभ बच्चन सवार नज़र आये हैं ।
तकनीकी पक्ष मजबूत है । फ़िल्म देखकर सब डरेंगे ।
लुप्त में डर विलुप्त नहीं हुआ इसीलिये फ़िल्म पर 3 स्टार का हक़ बनता है ।
संतोष साहू
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