जिस देश में नारी देवी मानी जाती है, उसी भारत देश में आये दिन रेप की घटनाएं बढ़ती जा रही है और अभी तक इसके खिलाफ सख्त कानून नहीं बन पाया है. आज भी कई ऐसे केस है जिसमें लोग न्याय पाने की आस में जी रहे हैं कुछ ने तो समाज में शर्मिंदगी से बचने के लिए मौत को गले लगा लिया है. कई बेटियां दरिंदों की हवस का शिकार बनी और उन्हें दर्दनाक मौत मिली. इन विक्षिप्त मानसिकता के लोगों को आज भी हमारे देश की न्याय प्रक्रिया में सजा नहीं मिली और जिन्हें मिली वे सात वर्ष की सजा काट फिर वही गुनाह कर रहे हैं. क्या उनमें कोई सुधार आया ? 'अतिथि देवो भव' कहने वाले इस देश में अपनी ही बेटी सुरक्षित नहीं तो विदेशी महिलाएं भला कैसे सुरक्षित रह सकती है, उनको भी ये भूखे भेड़िये नहीं छोड़ते. भारत इन अपराधों और अपनी कमजोर न्याय व्यवस्था से लचर हो गया है. आज हमसे डरने वाला पाकिस्तान इस मुद्दे पर हमारी खिल्ली उड़ाता है. ऐसे ही घटनाओं से आहत होकर देश में सुधार लाने के प्रयास में शेखर सिरिन ने फिल्म 'चिकनकरी लॉ' बनाई है.
इस फ़िल्म का निर्माण सेवन हिल्स सिने क्रिएशन ने किया है तथा पैनोरमा स्टूडियोज द्वारा रिलीज किया जा रहा है.
आशुतोष राणा, मकरंद देशपांडे, ज़ाकिर हुसैन, नतालिया और निवेदिता भट्टाचार्य के दमदार अभिनय से सजी फ़िल्म 'चिकनकरी लॉ' के लेखक और निर्देशक शेखर सिरिन हैं. शेखर ने भारत की शान को चोटिल करने वाले कुकृत्यों (रेप) के खिलाफ यह फ़िल्म बनाई है जिससे विदेशी लोग खासकर महिलाएं जो यहाँ पर्यटक बनकर या फिर बॉलीवुड में कैरियर बनाने के लिए आती हैं, बाद में वह किस तरह विकृत मानसिकता के लोगों के द्वारा रेप का शिकार हो जाती है, अपनी अस्मिता लूटने पर न्याय पाने के लिए उसे संघर्ष करना पड़ता है. और हमारी कानून व्यवस्था के कारण उन्हें क्या क्या तकलीफ का सामना करना पड़ता है जिसमें वकीलों के कठोर शब्दों से दोबारा पीड़िता का इज़्ज़त तार तार होता है, यही फ़िल्म में दिखाया गया है.
फ़िल्म में कोर्ट रूम ड्रामा द्वारा न्याय प्रणाली की सच्चाई दिखाने की कोशिश गई है. शेखर ने फ़िल्म की कहानी खुद लिखी है. कहानी और भारत की न्याय प्रक्रिया के मूलभूत रूप को दिखाने के लिए इन्होंने रिसर्च भी किया है, कई केस पर स्टडी की है फिर इसे पर्दे पर उतारा है. यह भले ही शेखर सिरिन की पहली फ़िल्म है पर यह फ़िल्म दर्शकों को जरूर झकझोर देगी उन्हें सोचने पर मजबूर कर देगी. यह फ़िल्म मेकिंग को एक नए पड़ाव पर ले कर जाएगी. शेखर सिरिन को संगीत से खास लगाव है, चिकनकरी लॉ फ़िल्म का संगीत इनके द्वारा कहानी के अनुसार तैयार किया गया है, फ़िल्म देखते समय यह अवरोध उत्पन्न नहीं करता. सिचुएशनल गीत है जो फ़िल्म को गति देते हैं, फ़िल्म में चार गानों का संकलन है. शेखर का कहना है कि वे किसी एक प्रान्त के व्यक्ति नहीं अपितु पूरा देश उनका है. वे भारत के कई जगहों पर रहें हैं, पूना में उनका जन्म हुआ, महू (मध्यप्रदेश) में उनका बचपन बीता, कभी गुजरात तो कभी बंगलोर में रहते हुए इन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की. महू में रहते हुए उन्हें लेखन में रुचि आयी साथ ही हिंदी में अच्छी पकड़ बनी.
फिल्म का शीर्षक 'चिकनकरी लॉ' रखने के पीछे भी उनका मकसद है, वे चाहते थे कि उनकी पहली फ़िल्म एक अलग मुकाम पर बने और शीर्षक भी अलग हो जो दर्शकों के जहन में बना रहे और दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर दे. फ़िल्म के नाम का सही उद्देश्य फ़िल्म देखने पर दर्शकों को समझ आएगा. इस फ़िल्म में ड्रामा है, रोमांच है, दर्द है, कानूनी सच्चाई है और संदेश भी है जो दर्शकों तक पहुंचेगा.
- गायत्री साहू
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