निर्माता विजय मूलचंदानी और निर्देशक ओवैस खान की फ़िल्म 'यारम' दो ऐसे हिन्दू मुस्लिम दोस्तों की कहानी है जिनकी दोस्ती के बीच मजहब रास्ता नहीं रोकता बल्कि अपने दोस्त की खुशी के लिए मजहब भी बदलने को तैयार हैं। दोस्त के लिए त्याग और दोस्ती निभाने की कहानी है यारम। यारम वह है जो एक दोस्त दूसरे दोस्त के मन की बात बिना कहे जान लेता है और आने दोस्त के लिए वे अपनी खुशियों को भी दांव लगाने से नहीं चुकते।
फ़िल्म में रोहित बजाज (प्रतीक बब्बर), साहिल कुरैशी (सिद्धान्त कपूर) बचपन के मित्र हैं और ज़ोया (इशिता राज) इनकी जिंदगी में आती है। साहिल शर्मीले व्यक्तित्व का है, वह अपने मन की बात किसी से कह नहीं पता और रोहित चंचल है, मनमौजी है, लेकिन अपने दोस्त के मन की बात समझता है इसलिए वह ज़ोया को बताता है कि साहिल उससे प्यार करता है, जबकि मन ही मन वह भी ज़ोया को पसंद करता है। साहिल और ज़ोया का निकाह हो जाता है, पर आपसी गलतफहमी की वजह से साहिल ज़ोया को तीन तलाक दे देता है। उसे अपनी गलती का अहसास होता है। परंतु वह मुसलमान है इसलिए उसे अपनी पत्नी को वापस पाने के लिए पत्नी का हलाला करवाना पड़ता है। वह अपनी पत्नी को पाने के लिए रोहित से कहता है कि वह धर्म परिवर्तन कर ज़ोया को अपना ले फिर उसे तलाक दे ताकि वह ज़ोया को अपना सके और मजहब भी बीच में ना आये। रोहित उसकी बात मानकर ज़ोया से शादी तो करता है, पर शादी के बाद उसका मन बदल जाता है।
इधर रोहित के माँ विजेता (अनिता राज), पिता संघर्ष बजाज (दिलीप ताहिल) और उसकी होने वाली पत्नी मीरा (शुभा राजपूत) उससे नाराज़ हैं। आखिर रोहित क्यों साहिल से किये वादे से पलट जाता है। साहिल और रोहित के बीच कैसी कश्मकश आ खड़ी होती है, क्या ज़ोया तीन तलाक के दर्द के साथ रोहित को अपना पाएगी या हलाला का नियम मान साहिल के पास आ जायेगी ? यह जानने के लिए फ़िल्म देखना पड़ेगा।
फ़िल्म का निर्देशन बहुत अच्छा है। तीनों ही कलाकारों ने उम्दा काम किया है। गाने आज के युवावर्ग को ध्यान में रखकर बनाया गया है। तीन तलाक और हलाला जैसे मुद्दों को बहुत ही खूबसूरती और भावनात्मक रूप से रुपहले पर्दे पर संजोया गया है। सारे किरदार का दमदार अभिनय है पर प्रतीक बब्बर और सिद्धान्त का अभिनय काफी दिलचस्प है। मॉरीशस में फ़िल्म की अधिकतर शूटिंग हुई है जो दर्शनीय बन पड़ी है। कुछ सीन में हास्य डालने का प्रयास किया गया है पर वह बहुत हद तक सफल नहीं रहा। टाइटल सॉन्ग यारम कर्णप्रिय है।
यह फ़िल्म दर्शकों को मस्ती और हंसी के साथ एक सामाजिक संदेश भी देता है।
संतोष साहू
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