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मुंबई विश्वविद्यालय और भागवत परिवार के तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन का मैं स्वयं हिस्सा बनी। विद्वानों के व्याख्यानों को सुनने के पाश्चात्य अपने रामचरित मानस और रामायण पर गर्व हो रहा है। हम ठहरे अवधवासी, वैसे भी अवध का कोई घर तुलसीमानस से खाली नहीं है। बचपन से ही उसके प्रति अनुराग है। परन्तु इस सम्मेलन में भागी होने के कारण वह फिर से और प्रगाढ़ हो गया। हृदय की गहराईयों से धन्यवाद है मुम्बई विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. करुणा शंकर उपाध्याय सर का, जो इस लोक कल्याणकारी कार्य को करने मे जुटे हुए हैं। संपूर्ण व्यवस्था पूर्ण: अनुशासित थी। इस तीन दिवसीय कार्यक्रम ने मन को फिर से एक नई दिशा दी। यह सत्य है कि सामन्जस्य एवं समन्वय से ही प्रेम का जन्म होता है। नारी अपने साहस, प्रेम, कुशलता, त्याग, दया, क्षमा आदि विशिष्ट गुणों के कारण महान बनी हैं। रामायण की समस्त नारियां अपने आप में अद्वितीय हैं।
वहीं मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ.करुणाशंकर उपाध्याय ने रामकाव्य के शैक्षणिक और साहित्यिक आयाम को स्पष्ट करते हुए कहा कि रामायण और महाभारत भारतवर्ष के सांस्कृतिक व्यक्तित्व का निर्धारण करने वाले महाकाव्य है।यदि वाल्मीकि रामायण का महत्व प्रकृति चित्रण की दृष्टि से अपूर्व है तो रामचरितमानस अपने समाजशास्त्रीय चिंतन के कारण अद्वितीय बन पड़ा है।भारतीय परंपरा में श्रेय और प्रेय को काव्य का सबसे बड़ा प्रयोजन माना गया है जो रामचरितमानस में अपने समूचे भाव वैभव के साथ उपलब्ध है। तीन दिवसीय कार्यक्रम के दूसरे दिन पंचम सत्र में रामायण के नारी पात्र स्त्री विमर्श के संदर्भ में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. रमाकांत शर्मा "उद्भ्रांत" (वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार ने किया।
इस दौरान लंदन से कार्यक्रम में पधारी स्वामी सूर्यप्रभा (परिव्राजिका) ने कहा कि लोग स्त्री को पुरुष के समतुल्य लाकर खड़ा करना चाहते हैं, जबकि स्त्री पुरुष से हमेशा से आगे रही है। इसके लिए किसी तरह के विचार विमर्श की आवश्यकता नहीं है। बल्कि इसे स्वीकार करना चाहिए। इस दौरान उन्होंने रामायण की पात्र माता सीता का उदाहरण देते हुए कहा कि
पुत्रि पबित्र किए कुल दोऊ। सुजस धवल जगु कह सबु कोऊ॥1॥
उक्त लाइनें-सीताजी को तपस्विनी वेष में देखकर जनकजी ने कही थी कि तूने दोनों कुल पवित्र कर दिए। तेरे निर्मल यश से सारा जगत उज्ज्वल हो रहा है। वहीं दूसरी तरफ नेपाल से आई डॉ. श्वेता दीप्ति (अध्यक्ष हिंदी विभाग, काठमांडू वि.वि.) ने कहा कि स्त्री विमर्श साहित्य का प्रिय विषय बन गया है। रामायण की प्रत्येक स्त्री अपना स्थान रखती है। तो मॉरीशस से पधारी डॉ वीनू अरुण (उपाध्यक्ष, श्री रामायण सेंटर, मॉरीशस) ने कहा कि किसी राष्ट्र की सामाजिक, संस्कृतिक एवं अस्मिता की पहचान इस बात से है कि वहां का समाज स्त्री को कितनी प्राथमिकता देता है। उन्होंने सहधर्मिणी, अर्धांगिनी को परिभाषित करते हुए कहा कि रामायण और महाभारत को इतिहास की संज्ञा दी गई है।  इतिहास का अर्थ होता है जो सच में घटित हुआ हो उसे इतिहास कहते हैं। उन्होंने आगे कहा कि पार्वती श्रद्धा एवं शिव विश्वास है, जिस पर दंपत्ति जीवन टिक हुआ है। इस दौरान उन्होंने विवाह विच्छेद जैसी आधुनिक कुरीतियों पर कहा कि श्रद्धा एवं विश्वास में कमी होना ही विवाह विच्छेद का कारण बनता है। पति पत्नी एक दूसरे से अलग नही हो सकते जैसे शब्द से अर्थ।
अभी रामायण में स्त्री अपने सतीत्व से खुद को कैसे सुरक्षित कर सकती है यही मूल्य जीवन में दिखाया गया है। वहीं डॉ कुमुद शर्मा ने कहा कि विश्व विसंगतियों के चौराहे पर खड़ा है। हम अपने संस्कृतिक मुल्यों का कैसे संरक्षण करें यह चिंता का विषय है। रामायण और महाभारत संस्कृति का आधार है। अस्मिता ही स्त्री विमर्श का केंद्र है। मातृत्व एवम पत्नित्व सम्पूर्ण स्त्री जीवन पर टिका है। पार्वती ने अपने पति को सौन्दर्य से नहीं तप से पाया है। सीता का नारी सशक्तिकरण देखो बच्चों को अकेले जन्म देती है और उनका परवरिश भी करती है। नारी की स्वाधीनता एवं स्वतंत्रता पर स्त्री विमर्श का बहुत बड़ा मूल्य है। मैं "अहम" आते ही दांपत्य जीवन में टकराव आते हैं। राम आदर्श पुरुष हैं तो उन्हें आदर्श बनाने में स्त्री सीता की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
स्त्री जीवन आसान नहीं होता। डगर कठिन है, बड़ी साधना करनी पड़ती है, यदि हम रामायण पढ़ते रहे तो हमें दृढ़ता एवं तेज मिलता रहेगा। समन्वय, सहभागिता एवं सामंजस्य से ही परिवार और देश चलता है। घंटों चले इस कार्यक्रम का समापन करते डॉ.करुणाशंकर उपाध्याय ने संपूर्ण आयोजन में भूमिका अदा करने वाले और आमंत्रित अतिथियों का आभार व्यक्त किया।

- ब्रजबाला वरुण तिवारी

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