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मुंबई। दुबई में फंसे 186 गरीब मजदूरों ने दुबई से मुंबई लौटने के लिये एक चार्टर्ड फ्लाइट में कदम रखने के बाद राहत की सांस ली। महाराष्‍ट्र के सभी क्षेत्रों के मजदूर हाल ही में मुंबई एयरपोर्ट पर पहुंचे। इन मजदूरों की आंखों में खुशी के आंसू थे और होंठों पर मुस्‍कुराहट थी। उन्‍होंने अपनी घर वापसी के लिये मसाला किंग डॉ. धनंजय दातार का शुक्रिया अदा किया।
अल आदिल ट्रेडिंग एलएलसी के सीएमडी धनंजय दातार की गिनती दुबई के अरबपति लोगों में की जाती है। वह अपने लोकपरोपकारी कार्य के लिये भी जाने जाते हैं। उन्‍होंने इन मजदूरों की यात्रा का सारा खर्चा उठाया । उन्‍होंने अब तक दुबई में फंसे 3000 जरूरतमंद भारतीयों को भारत पहुंचाने में मदद की है और उनके एयर टिकट्स एवं मेडिकल टेस्‍ट्स पर 3 करोड़ रूपये से भी ज्‍यादा खर्च किये हैं। ये लोग भारत के अलग-अलग राज्‍यों जैसे कि केरल, आंधप्रदेश, तमिलनाडु, पंजाब, गोवा, राजस्‍थान इत्‍यादि के रहनेवाले हैं। जरूरतमंद लोगों की मदद का यह अभियान अगले कुछ महीनों तक यूं ही चलता रहेगा।
इस पहल के बारे में बताते हुये डॉ. धनंजय ने कहा, ''लॉकडाउन के बाद, यूएई और भारत के बीच हवाई यातायात लगभग तुरंत शुरू हो गया था, लेकिन दुबई से मुंबई के बीच उड़ानें अभी हाल ही में शुरू हुई हैं। यही कारण है कि महाराष्‍ट्र के 65,000 भारतीय, जिनमें मजदूर, स्‍टूडेंट्स, पर्यटक इत्‍यादि शामिल हैं, अभी भी दुबई में फंसे हुये हैं और जल्‍द से जल्‍द फ्लाइट बुकिंग का लाभ उठाने का इंतजार कर रहे हैं। इन सभी में गरीब मजदूरों, जिनकी नौकि‍रयां चली गई हैं, की हालत सबसे ज्‍यादा बुरी है। हम अभी तक दुबई में हजारों जरूरतमंद परिवारों को नि:शुल्‍क भोजन और मेडिकल किट्स उपलब्‍ध करा रहे थे, लेकिन जब हमें पता चला कि वहां पर सैंकड़ों लोग ऐसे हैं, जो अपनी नौकरियां गंवा चुके हैं और उनके पास पैसे नहीं हैं तथा उन्‍हें मदद की सख्‍त जरूरत है। तो हमारी कंपनी ने उनकी यात्रा और मेडिकल टेस्‍ट का खर्च उठाने का फैसला किया। इनमें से कुछ लोगों को मजबूरी में सार्वजनिक पार्कों में रहना पड़ रहा था, क्‍योंकि उनके पास अपने घरों का किराया देने तक के पैसे नहीं थे। कुछ लोग भारत में इस महामारी के कारण अपने परिवार वालों को भी खो चुके थे, लेकिन उनकी अंत्‍येष्‍टी में आने में असमर्थ थे। किसी की पत्‍नी अस्‍पताल में भर्ती थी, किसी के बच्‍चों को होम क्‍वारंटाइन किया गया था। दिल को छू लेने वाली ऐसी कहानियों ने वाकई में हमें एक सीएसआर पहल के रूप में यह अभियान शुरू करने के लिये प्रेरित किया।
उन्‍होंने आगे कहा, 2000 आवेदकों की एक सूची में वाकई में जरूरतमंद लोगों को चुनना हमारे लिये एक चुनौती थी। हमने उन मजदूरों को प्राथमिकता दी, जो पहले 2000 दिरहम से भी कम का मासिक वेतन कमा रहे थे और महामारी के दौरान उनकी नौकरियां तक चली गईं थीं। इसके अलावा, सफर शुरू करने के पहले कुछ अन्‍य महत्‍वपूर्ण औपचारिकताओं को भी पूरा करना था। हमने महाराष्‍ट्र सरकार और विदेश मंत्रालय से उनकी अनुमति मांगने के लिये सम्‍पर्क किया। इसके साथ ही यूएई में भारतीय दूतावास के साथ सहयोग किया गया और फिर दोनों देशों की सभी वैधानिक औपचारिकताओं को पूरा किया गया। आखिर में हमने एक चार्टर्ड फ्लाइट का इंतजाम करने के लिये एयरलाइन से बातचीत की। हमने मुंबई पहुंचने के बाद इन यात्रियों के होम क्‍वारंटाइन का भी जिम्‍मा उठाया। मेरी पत्‍नी वंदना और बेटों ॠषिकेश और रोहित ने भी इस पूरी प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लिया। धनाश्री पाटिल (पुणे) और राहुल तिलपुले का भी बहुत-बहुत आभार, जिन्‍होंने हमारी काफी मदद की। साथ ही हम अकबरअली ट्रैवेल्‍स (मुंबई) के भी आभारी हैं, जिन्‍होंने यात्रा अनुमतियों से संबंधित औपचारिकताओं को पूरा करने में हमारी मदद की।

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