लोअर परेल से बेलापुर के बीच ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया – 45 कि.मी. की दूरी मात्र 25 मिनट में तय
मुंबई : अपोलो हॉस्पिटल्स नवी मुंबई में महाराष्ट्र के सांग्ली-निवासी, 56-वर्षीय, दादासाहेब पाटिल का सफलतापूर्वक हृदय प्रत्यारोपण हुआ। 31-वर्षीय मृतक युवक के शरीर से दिल निकाला गया और बिना किसी देरी किये इसे विशेष रूप से तैयार किये गये ग्रीन कॉरिडोर से पहुंचाया गया। लोअर परेल से अपोलो हॉस्पिटल्स नवी मुंबई के बीच 45 कि.मी. की दूरी मात्र 25 मिनट में तय करते हुए डोनर हार्ट को अपोलो हॉस्पिटल पहुंचाया गया। कंसल्टेंट, हार्ट एंड लंग ट्रांसप्लांट सर्जन, डॉ.संजीव जाधव के नेतृत्व में अपोलो की स्पेशलिस्ट हार्ट ट्रांसप्लांट टीम ने अपोलो हॉस्पिटल में इसे प्रत्यारोपित किया गया। मरीज, इस्केमिक डाइलेटेड कार्डियोमायोपैथी से पीडि़त था, जिसका अर्थ है कि उनके हृदय की ब्लड पंप कर पाने की क्षमता घट रही थी, जिससे मरीज का हार्ट फेल हो जाता है, जिसे नया जीवन देने के लिए हृदय प्रत्यारोपण ही एकमात्र विकल्प रह जाता है।
अपोलो हॉस्पिटल्स, नवी मुंबई के हार्ट एवं लंग ट्रांसप्लांट सर्जन, डॉ. संजीव जाधव ने बताया, ''यह मरीज 8 महीने पहले हमारे यहां बाईपास सर्जरी के लिए आया। परीक्षण के दौरान, यह पाया गया कि उसका हृदय मात्र 25 प्रतिशत ही काम कर रहा था। कोविड के चलते, उस समय सर्जरी नहीं हो पाई और उसे अपने शहर लौट जाना पड़ा था। बाद के महीनों में, उसके हृदय का काम करना धीरे-धीरे कम होता गया और अंत में ऐसी स्थिति पैदा हुई जहां उसके लिए पूरी तरह से लाइफ सपोर्ट और इनोट्रोप आवश्यक हो गया, ये दवाइयां हृदय के संकुचन बल को बढ़ाने का काम करती हैं। उसके प्रत्यारोपण से पहले, उसे कई अस्पतालों में भर्ती कराया गया, क्योंकि उसे बार-बार हार्ट-फेल की समस्या का सामना करना पड़ रहा था। यह समय के साथ दौड़ थी। ज्योंही हमें मुंबई में डोनर के बारे में पता चला, त्योंही ग्रीन कॉरिडोर एक्टिवेट किया गया। डोनर का हार्ट निकाला गया, उसे लाया गया और सफलतापूर्वक उसका प्रत्यारोपण हुआ। यह एक वैज्ञानिक चुनौती भी रही है, जहां डॉक्टर्स और नर्स अपनी जिंदगी को खतरे में डालकर मरीजों की जान बचाने की कोशिश कर रहे हैं। हमें खुशी है कि हृदय प्रत्यारोपण सफल रहा और मरीज ने अच्छा रिकवर किया है।
डॉ. संजीव की सहायता के लिए एक्सपर्ट डॉक्टर्स की एक टीम भी मौजूद थी, जिसमें डॉ.शांतेष कौशिक, कार्डियो थोरेसिक एवं वैस्क्युलर सर्जन, डॉ. सचिन सनगर, सीवीटीएस सर्जन, डॉ. गुणाधर पाढी, इंटेसिवीटस और डॉ. हरिदास मुंड, इंटेसिवीटस, एवं डॉ. सौरभ तिवारी शामिल थे। हृदय प्रत्यारोपण की सर्जरी में 90 मिनट का समय लगा और निगरानी में रहने के बाद मरीज को आईसीयू में स्थानांतरित कर दिया गया।
एक ग्रीन कॉरिडोर एक निश्चित मार्ग है जिसे एम्बुलेंस के लिए बनाए गए सभी ट्रैफ़िक से साफ़ किया जाता है, जो मृतक दाता से पुनः प्राप्त अंगों को सक्षम बनाता है, जिसका अर्थ है किसी भी ट्रैफ़िक सिग्नल या अवरोधों का सामना किए बिना तेज़ी से इच्छित अस्पताल तक पहुँचना। चूंकि मानव अंगों को प्रत्यारोपित करने का समय कम है, इसलिए हरे गलियारे सुनिश्चित करते हैं कि एम्बुलेंस ट्रैफिक की भीड़ से बच जाए और कम से कम समय में गंतव्य तक पहुंचे।
डोनर हार्ट प्राप्तकर्ता दादासाहेब पाटिल ने कहा, “मैंने हाल ही में पुणे के संभावित दाता से प्रत्यारोपण के लिए एक अवसर गंवाया था। मेरे लिए, यह समय के खिलाफ एक लड़ाई थी क्योंकि मैंने पहले ही दिल की विफलता का सामना किया था। शुक्र है कि हमें एक दाता मिल गया और मैं अपोलो हॉस्पिटल्स टीम का शुक्रगुजार हूं कि यह सुनिश्चित किया गया कि पूरा प्रत्यारोपण सुचारू रूप से चले। मैं जीवन में यह दूसरा मौका देने के लिए दाता के परिवार और डॉक्टरों की टीम का आभारी हूं!
नवी मुंबई के अपोलो हॉस्पिटल्स के सीओओ और यूनिट हेड, संतोष मराठे ने कहा, “ग्रीन कॉरिडोर बनाने में सहयोग और समर्थन के लिए हम अधिकारियों के शुक्रगुज़ार हैं जिन्होंने ट्रांसप्लांट को संभव बनाया। देश में हृदय रोग के बढ़ते मामलों के साथ, हमें रोकथाम, शीघ्र निदान और प्रबंधन और उपचार के लिए एक मजबूत प्रणाली की आवश्यकता है। तीन वर्षों के थोड़े समय में, अपोलो अस्पताल नवी मुंबई को पश्चिमी भारत के सबसे उन्नत प्रत्यारोपण केंद्रों में से एक माना गया है, जिसमें सफल लिवर, किडनी, हार्ट और बोन मैरो ट्रांसप्लांट विशेषज्ञों की समर्पित टीम द्वारा किए जा रहे हैं। हमारे पास एक बहुत ही सक्षम नैदानिक टीम है, जो हार्ट फेल्योर क्लिनिक के माध्यम से मरीजों तक पहुंचती है और जो इस तरह के मामलों के लिए बहुत ही जटिल प्रीऑपरेटिव और पोस्ट-ऑपरेटिव केयर प्रबंधन कर सकती है।
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