इधर के वर्षों में अलका पांडेय सतत रचनारत हैं। वे एक साथ कई विधाओं में लिख रही हैं। कई क्षेत्रों में एक साथ काम कर रही हैं। इनकी कविताओं को मैं लगातार 2017 से सुन रहा हूँ। किन्तु इनका नया कविता संग्रह "एक अकेली औरत" पढ़कर एक अलग अनुभूति हुई। इस पुस्तक का पहला पाठक मैं हूँ।इसका मुझे बेहद संतोष है। संग्रह की कुछ रचनाओं को पढ़कर लगा कि ये वर्तमान में विभिन्न रचनाकारों द्वारा रची जा रही रचनाओं में भी श्रेष्ठ हैं। स्त्री विमर्श की कुछ रचनायें तो आंदोलित कर देती हैं। सोई हुई संवेदनाओं को झकझोर कर जगा देती हैं। मैं उदाहरण के रूप में रचनायें उद्धृत नहीं करूँगा जैसा कि दूसरे लेखक करते हैं। मैं चाहूँगा कि पाठक पुस्तक खरीद कर स्वयं पढ़ें।
हाँ, मैं उन रचनाओं के शीर्षक जरूर बताऊँगा। जिन्हें पढ़कर आप बेझिझक कह सकेंगे कि ऐसी रचना एक सक्षम रचनाकार ही कर सकता है। अलका पांडेय की वज़ूद, तुम्हारीं यादें, वजह, कौन हो तुम, भूख, मोम की गुड़िया, हौसले, सृजन कर्ता और अंतर्द्वंद आदि रचनायें उनकी सम्वेदना और सामाजिक समझ की श्रेष्ठ द्योतक हैं। अब तक अलका की छवि मूलतः एक समाज सेवक की रही है। किंतु इस संग्रह को पढ़ने के बाद एक कवयित्री के रूप में भी इनकी छवि उभरेगी। एक लेखक के रूप में मेरा यह दृढ़ मत है। संग्रह की शीर्ष रचना "एक अकेली औरत" एक स्त्री की उदात्त सम्वेदना की प्रतीक है। ऐसी प्रतिरोध की रचनायें समाज के सामने आनी चाहिए। इस संग्रह को महिला पाठकों को अवश्य पढ़ना चाहिए। इसकी रचनायें महिलाओं के जीवन का एक दर्पण प्रस्तुत करती हैं। इस संग्रह में अतुकांत कविताओं के साथ सुंदर छंदबद्ध गीत भी हैं। संग्रह में प्रेम और सामाजिक विषमताओं पर भी अनेक रचनायें हैं। अधिकतर रचनायें अलका पांडेय की रचनाधर्मिता के समर्पण और निष्ठा की ओर से आश्वस्त करती हैं। अब उनकी रचनाओं को पढ़कर आभास हो रहा है कि वे एक वृहत्तर समाज के लिए पूरी चेतना के साथ लिख रही हैं। ऐसे में उनकी रचनायें उस समाज तक पहुँचनी भी चाहिए।
- पवन तिवारी
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