मुम्बई। सावन की रिमझिम बूंदे को इठलाते देख मन मयूर हो नाचने लगता है। इसी थीम पर अग्नि शिखा मंच ने काव्य सम्मेलन का आयोजन किया इस काव्य सम्मेलन का उद्घाटन राम राय ने किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सेवासदन रहे। वहीं विशेष अतिथि जनार्दन सिंह, आशा जाकड़, संतोष साहू, शिवपूजन पांडे, पन्ना लाल शर्मा, अंबर वल्लभ आदि ने संबोधित कर मंच की गरिमा बढ़ाई।
मंच की अध्यक्ष अलका पाण्डेय ने बताया कि करीब 54 कवियों ने सावन पर मनमोहक कविता पाठ किया। सभी कवियों को सम्मान पत्र दे कर सम्मानित किया गया।
प्रस्तुत रचनाकारों की कुछ पंक्तियां :-
सावन में साजन तेरी यादों की
विरह वेदना दिल को तड़फड़ाती
सुध बुध खोती जा रही
विरह की पीड़ा में !!
हिय में मिलन का दीप जला सोलह किया श्रृंगार !!
सोते जागते तेरा अक्स
मिलन की लगी आस !!
अब न सताओ आ भी जाओ ओ निष्ठुर बालम !
सावन में साजन तेरी याद सताए
तुम क्या जानो विरह की पीड़ा !!
भीगी पलकों के अरमान
पिया मिलन की आस लिए
झर झर बहते रहते !!
कब से हूँ व्याकुल तेरा अवलम्बन पाने को
विरह वेदना तन मन ख़ाक किए है !!
घायल नागीन सी तडफ रही !
मिलन के सपने लेकर रात रात भर जागी !!
चाँद तारो से बातें करती मेरी विरह वेदना !!
साजन तेरी विरह वेदना छीन रही मेरा जीवन ..
करो कृपा मुझपर, मचल रहा है मन कही लगता नही !!
नयन अकुलाते दर्शन पाने को
विरह वेदना सही न जाए
ढीले पड़ गयेअंग प्रत्यंग !!
सांसो की लहरें किनारा पाने को व्याकुल !
सावन के मौसम में बूँद बूँद सी पिघल रही !!
ढलने लगी अब तो वांसती ऋतु अल्हड यौवन की !
अधरो पर लिए प्रणय निवेदन आ भी जाओ साजन!!
सावन आया तेरी यादें लेकर
ख़्वाब अधूरे पुरे कर दो
विरह की अग्नि शांत कर दो !!
- डॉ अलका पाण्डेय, मुम्बई
साजन तुम मेरे हमदम
तुम ही हो दिल की धड़कन
तुम संग जब जब रहती हूं
लगता है बरसा सावन
प्रीत का ये बरसा सावन।
- श्रीमती निहारिका झा
भोजपुरी कजरी
चढा़ अषाढ़ घटा उठे काली,
रिम झिम बरषे सवनवा ना।
भादो मास बिजुरिया चमके,
थर थर कांपे परनवा ना।
- बृजकिशोरी त्रिपाठी उर्फ भानुजा
सावन की फुहारें
आषाढ़ गर्मी मुँह चुराने लगी।
सावन की ऋतु आने लगी।
सर्वत्र हरियाली का साम्राज्य,
हर ओर पुष्प बहार आने लगी।।
- वैष्णो खत्री वेदिका
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