मुम्बई। बॉलीवुड के चर्चित व विवादास्पद फिल्ममेकर रामगोपाल वर्मा की 'लड़की - इंटर द गर्ल ड्रैगन' एक महिला प्रधान एक्शन फिल्म है। इसमें मुख्य भूमिका निभा रही है पूजा भालेकर। पूरी फिल्म पूजा के ही इर्दगिर्द घूमती है जो कि ब्रूसली को भगवान की तरह पूजती है। फिल्म की शुरुआत यूँ होती है कि एक रेस्टॉरेंट में कुछ गुंडे एक लड़की को उसके कपड़ों के कारण छेड़ते हैं। वहीं नील नाम का लड़का उसे बचाने की कोशिश करता है लेकिन उसे फाइट नहीं आती इसलिए वह उनसे लड़ नहीं पाता इसी बीच पूजा गुंडों से भीड़ जाती है और दौड़ा दौड़ा कर सबको पीटती है। पूजा को ब्रसली कि तरह बनना है, ब्रसली उसके आइडल है इसलिए वह ड्रैगन क्लब फाइट स्कूल जॉइन करती है। स्कूल के माध्यम से खुद को ब्रुसली से जुड़ा महसूस करती है। लेकिन एकलव्य की भांति पूजा पहले से ही ब्रुसली की फिल्में और डॉक्युमेंट्री देख फाइट करना सीख चुकी है। नील एक फोटोग्राफर है वहीं पूजा मॉडलिंग भी करती है। दोनों की नजदीकियां बढ़ती है और एक दिन नील उसे चीन ले जाता है और वहीं ब्रूसली के प्रतिमा के सामने अपने प्यार का इजहार कर शादी का प्रस्ताव रखता है। फिर दोनों खुशी खुशी भारत वापस आ जाते हैं।
इसी बीच बी एम बिल्डर को ड्रैगन क्लब की जमीन भा जाती है वह उसे हथियाने के लिए मास्टर की हत्या करवा देता है। मास्टर की अचानक मौत से पूजा को आघात लगता है और वह सच्चाई का पता लगाती है। इस बीच उसकी लाइफ में कई उतार चढ़ाव आते हैं। पूजा कैसे अपने मास्टर के कातिल का पता लगाएगी वह उन तक पहुंचेगी और कैसे जीतेगी इसका सही आनंद तो फिल्म देखकर ही महसूस होगा।
फिल्म को देख आपको रामगोपाल वर्मा की फिल्म रंगीला और नाच याद आ जाएंगे। फिल्म अब भी पुराने ढर्रे पर ही बनी है इसमें आधुनिकता का अभाव है। समुंदर की सुंदरता फिल्म में कई बार इस्तेमाल हुआ है। पूजा के फाइटिंग सीन बहुत अच्छे व प्रभावी हैं। सभी कलाकारों ने अच्छा काम करने का प्रयास किया है। विलेन बने दमदार अभिनेता अभिमन्यु सिंह यहाँ निराश करते हैं। राजपाल यादव ने फिल्म में हास्य के रंग भरने की कोशिश की लेकिन वह दर्शकों को खुल कर हंसा नहीं पाये। फिल्म का गीत भी रामू की पुरानी फिल्मों के गीतों जैसा है। फिल्म की कहानी के अनुसार उसमें कुछ नयापन नहीं लाया जा सका जो साधारण और एक ही धारा में चलती है। पूजा भालेकर ने फाइट सीन में पूरा जान डाल दिया है लेकिन अभिनय के मामले में अभी कच्ची है। संवाद बोलने में कमजोर पड़ जाती है। यह उसकी डेब्यू फिल्म है और उसने कुछ हद तक अच्छा काम किया है। वर्तमान समय में बाहुबली और आरआरआर, केजीएफ जैसी भव्य फिल्मों के आगे फिल्म फीकी पड़ती नज़र आती है। यह फिल्म क्षेत्रीय दर्शकों को पसंद आएगी। फिल्म में बिकनी पहन कर अभिनेत्री का गुंडों से लड़ना कुछ अटपटा लगता है। इसमें अच्छी बात यह है कि हिंदुस्तानी फिल्म होते हुए भी यह चाइना के चालीस हजार स्क्रीन पर दिखाई जाएगी। रामू की फिल्म का एक अलग दायरा होता है इनकी फिल्में लीग से हटकर और अलग मुद्दों पर बनी होती है। उन्होंने शिवा, रात, रंगीला, सत्या, कंपनी, सरकार, भूत जैसी उम्दा व तकनीकी पक्ष में मजबूत फिल्में बनाकर स्वयं को मास्टर डायरेक्टर के रूप में स्थापित किया है। लेकिन कुछ वर्षों से उनकी फिल्मों में पहले वाली बात नज़र नहीं आती। हालांकि उनके इस फिल्म में कुछ चीन के कलाकार भी काम कर रहे हैं जिनका काम सराहनीय है। यह फिल्म ब्रुसली को समर्पित फिल्म है और उनकी शैली को पूजा ने अच्छे ढंग से निभाया है। फिल्म में एक बात सही है कि लड़कियों को अपनी आत्मरक्षा खुद करनी चाहिए इसके लिए उन्हें मार्शल आर्ट्स, ताइक्वांडो, कराटे आदि आत्मरक्षा के उपाय सीखना चाहिए।
अभी भी कुछ वर्ग हैं जो ऐसी फिल्मों को देखना पसंद करते है इसलिए इस फिल्म को मिलते हैं दो स्टार।
- गायत्री साहू
No comments:
Post a Comment