केस मिटाने के लिए पत्रकार के परिवार से मांगे थे डेढ लाख रूपए।
संवाददाता / मुंबई
बदले की भावना से एक वरिष्ठ पत्रकार को फर्जी रेप के आरोप में फंसानेवाले माहिम पुलिस थाने के वरिष्ठ पुलिस निरिक्षक सूर्यकांत कांबले को राज्य मानवाधिकार आयोग ने समन जारी कर जबाव मांगा है कि किस सबूत के आधार पर पत्रकार को गुनहगार बनाया गया था। कांबले पर यह आरोप है कि फर्जी सबूत के आधार पर और कथित पीडिता पर दबाव बनाकर एक पत्रकार को रेप के आरोप में फंसाने के बाद पत्रकार के परिवार से केस कमजोर करने के एवज में डेढ लाख रूपए मांगे थे।
गौरतलब है कि सन 2014 में वरिष्ठ पत्रकार शैलेश जायसवाल को रेप के आरोप वे गिरफ्तार किया गया था। इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें निर्दोष बरी करते हुए यह कहा कि इस घटना की जांच सही तरिके से नही की गई थी। जबकि सत्र न्यायालय में यह साबित हुआ है कि फर्जी दस्तावेज के आधार पर शैलेष जायसवाल को पोक्सो कानून में फंसाने की कोशिश की गई थी। जबकि कथित पीडिता ने भी स्वयं बॉम्बे हाईकोर्ट में दोबारा दिए अपने बयान में ये कहा है कि वह पत्रकार के खिलाफ फर्जी शिकायत देने को तैयार नहीं थी। जिसके कारण पुलिस ने सरकार की ओर से यह मामला दर्ज कर पत्रकार को गलत तरिके से गिरफ्तार कर प्रताडित किया था। बता दे कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने पत्रकार को इस मामले में पूरी तरह निर्दोष मुक्त करने के बाद राज्य सरकार ने भी कथित पीडिता को भी मनोधैर्य योजना के तहत दी गई रकम को वापस लौटाने का आदेश जारी किया है।
पत्रकार शैलेश जायसवाल ने दिए बयान के मुताबिक सन 2014 में कुछ फेरीवाले और दुकानदारों ने मिलकर उनसे शिकायत की थी कि जोगेश्वरी पुलिस थाने के पुलिस निरिक्षक सूर्यकांत कांबले उनके दुकानों से मुफ्त में सामान ले जाते है औऱ जबरन फेरीवालों पर कार्रवाई नहीं करने के बदले उनसे जबरन पैसे मांगते थे। ज्ञात हो कि सूर्यकांत कांबले इस समय माहीम पुलिस थाने के वरिष्ठ पुलिस निरिक्षक के तौर पर कार्यरत है। इसी दौरान फेरीवाले और दुकानदारों की लिखित शिकायत मिलने के बाद जायसवाल ने सूर्यकांत कांबले से मिलकर जवाब तलब किया और उसके बाद पूरे तथ्यों के साथ समाचार को आखबार में प्रकाशित किया। इस समाचार के छपने के बाद पत्रकार के प्रति मन में बदले की भावना रखते हुए सूर्यकांत कांबले ने साजीश रच कर पत्रकार को पोक्सो कानून में फंसाकर प्रताडित किया।
पत्रकार शैलेश जाय़सवाल ने मानवाधिकार आयोग को दिए शिकायत में कहा कि पुलिस कस्टडी के दौरान सूर्यकांत कांबले ने मानवाधिकार का उल्लंघन करते हुए उन्हें निर्वस्त्र करके बूरी तरह मारापीटा गया था। कथित पीडिता जब पत्रकार के खिलाफ शिकायत करने को तैयार नहीं थी, तब सूर्यकांत कांबले ने उस पर दबाव बनाया औऱ सरकार की तरफ से सूमोटो एफआईआऱ दर्ज कर जायसवाल के खिलाफ फर्जी कार्रवाई की। इसके बाद पीडिता को जानबूझकर बाल सुधार गृह भेजकर तीन महिने तक कैद रखा। ताकि उसे परिवार से मिलने नहीं दिया जा सके। वहीं कथित पीडिता के परिवारवालों को मनोधैर्य योजना के जरिए मिलनेवाली मोटी रकम का लालच देकर उनसे फर्जी दस्तावेज बनवाकर जायसवाल को पोक्सो के तहत फंसाने की कोशिश की गई। ताकि जायसवाल को जमानत नहीं मिल सके।
ज्ञात हो कि विभिन्न अनैतिक कार्रवाई के चलते सूर्यकांत कांबले हमेशा से ही समाचारों एवं सोशल मीडिया के ट्रोल का शिकार होकर बदनाम होते रहे हैं। मानवाधिकार आयोग ने जायसवाल की शिकायत पर संज्ञान लेते हुए कांबले को समन जारी किया है। अगली सुनवाई 25 अगस्त को होनी है। जबकि कई समाजसेवक एवं संस्थाओं ने मिलकर जायसवाल के समर्थन में राज्य मानवाधिकार आयोग को पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग की है।
इस मामले को लेकर मिशन पत्रकारिता लिगल हेल्प विंग के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जस्टीस रविंद्रसिंह यादव ने इस घटना की तीव्र निंदा करते हुए कहा कि आजकल किसी को बदनाम करने के लिए फर्जी बलात्कार के मामहों में काफी इजाफा देश में देशने को मिल रहा है। यह सरासर न्यायिक आतंकवाद ही है, जिससे आरोपी पुरूष की जिंदगी लगभग बर्बाद ही हो जाती है। उन्होंने कहा कि कानून का दुरूपयोग कर फर्जी आरोप में किसी को फसानेवाले व्यक्ति के खिलाफ कडी कार्रवाई के नियम सरकार को बनाने चाहिए। साथ ही निर्दोष मुक्त हुए पीडित व्यक्ति के पुनर्वसन का भी प्रावधान होना चाहिए। ताकि फिर कभी कोई किसी पर फर्जी आरोप ना लगा सके।
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