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(लेखक: प्रोफ़ेसर (डॉ.) सम्बित दास, एमडी (मेडिसिन), डीएम एंडोक्रीनोलॉजी, अपोलो शुगर क्लिनिक्स)

दुनियाभर में डायबिटीज़ अर्थात् मधुमेह से उपजे आर्थिक व स्वास्थ्य संबंधी ख़तरे के मद्देनज़र विश्व मधुमेह दिवस की परिकल्पना 1991 में इंटरनैशनल डायबिटीज़ फ़ेडरेशन द्वारा विश्व स्वास्थ्य संगठन की सहायता से की गयी थी. विश्व मधुमेह दिवस को संयुक्त राष्ट्र ने 2006 में अपनाया था और आधिकारिक रूप से मान्यता प्रदान की थी. तब से ही विश्व मधुमेह दिवस हर साल 14 नवम्बर को मनाया जाता है. उल्लेखनीय है कि हर साल किसी एक थीम के तहत ही विश्व मधुमेह दिवस मनाया जाता है. इस साल (2022) में विश्व मधुमेह दिवस 'एजुकेशन टू प्रोटेक्ट टुमारो' यानी 'कल को उज्ज्वल बनाने के लिए शिक्षा' है.

पिछले कुछ सालों में मधुमेह से पीड़ित लोगों की संख्या में बेतहाशा इज़ाफ़ा हुआ है. मौजूदा समय में मधुमेह के रोगियों की संख्या के मामले में भारत का स्थान दूसरा है. प्री-डायबिटीज़ मधुमेह होने से पूर्व की स्थिति है जो सही समय पर निगरानी नहीं किये जाने की सूरत में धीरे-धीरे डायबिटीज़ मेलिटस में तब्दील हो जाती है. जब किसी शख़्स में फ़ास्टिंग ब्लड ग्लूकोज़ 100 mg/dl से अधिक और 126 mg/dl से कम होता है तो उसे इम्पैअर्ड फ़ास्टिंग ग्लूकोज़ (IFG) कहते हैं. जब भोजन-पश्चाश्त शुगर का 75 ग्राम ग्लूकोज़ लोड 140 mg/dl से अधिक और 200 mg/dl से कम होता है तो इसे इम्पैअर्ड ग्लूकोज़ टॉलेंरेंस (IGT) के नाम से जाना जाता है. IFG और IGT को प्री-डायबिटीज़ यानी मधुमेह के पूर्व की अवस्था के तौर पर जाना जाता है. आजकल हीमोग्लोबिन (जो HbA1C के नाम से प्रचलित है) का स्तर 5.7% से 6.4% के बीच हो तो इसे भी प्री-डायबिटीज़ अथवा बॉर्डरलाइन डायबिटीज़ कहा जाता है. प्री-डायबिटीज़ की अवस्था वाले लोगों में साल-दर-साल फ़्रेंक डायबिटीज़ प्राप्त करने की संभावना 3.6-8.7% के बीच होती है. प्री-डायबिटीज़ के ब्लड ग्लूकोज़ की रेंज में इसका हृदय की गतिविधियों पर विपरीत असर पड़ता है और ऐसे में हार्ट अटैक आने की आशंका काफ़ी बढ़ जाती है. मगर प्री-डायबिटीज़ की इस अवस्था से सामान्य होकर वापस लौटना मुमकिन है अथवा ये कहा ही जा सकता है कि ठीक से निगरानी रखने पर इसे नियंत्रित तो किया ही जा सकता है.

चूकिं इसके लक्षण दिखाई नहीं देते हैं तो ऐसे में अधिकतम रिस्क वाले लोगों की नियमित रूप से स्क्रीनिंग की आवश्यकता पड़ती है. 45 साल से ज़्यादा उम्र के लोगों की स्क्रीनिंग किये जाने की ज़रूरत है. किसी भी उम्र के सामान्य से अधिक वज़नी लोगों को मधुमेह होने की आशंका सबसे ज़्यादा होती है. ख़ासकर जो शारीरिक रूप से किसी तरह की मशक़्क़त नहीं करते हैं, जिनके परिवार में किसी ना किसी को मधुमेह रहा हो, जिनका संबंध हाई-रिस्क समुदाय से हो, ऐसी महिलाएं जिन्होंने >9 lb से कम वज़नी बच्चे को जन्म दिया हो, जो हायपर टेंशन का शिकार हों, जिनका कोलेस्ट्रॉल लेवल कम (HDL कोलेस्ट्रॉल <35 mg/dl) और/अथवा हाई ट्रायग्लासराइड लेवल >250mg/dl हो, उन सभी की स्क्रीनिंग की जानी चाहिए. अगर इसके नतीजे सामान्य हैं तो 3-3 साल के अंतराल पर फिर से परीक्षण किये जाने चाहिए.

स्वस्थ जीवन को जीने के लिए स्वस्थ आहार करना, नियमित रूप से व्यायाम करना और शरीर के वज़न को नियंत्रित रखने की अहम भूमिका होती है. ऐसा करने से डायबिटीज़ की बीमारी को नियंत्रण में रखने और इसे गंभीर अवस्था में पहुंचने से रोकने में ख़ासी मदद मिलती है. हाई-रिस्क वाले मरीज़ों को मेटाफॉर्मिन नामक दवाई भी दी जाती है मगर इसका सेवन डॉक्टर के दिशा-निर्देशों के मुताबिक ही किया जाना चाहिए.

एक सप्ताह में कम से कम 150 मिनट तक सामान्य शारीरिक गतिविधियां करने से डायबिटीज़ का असर काफ़ी हद तक कम हो जाता है. ऐसे में डायबिटीज़ का शिकार लोग अगर 20-30 मिनट तक तेज़ गति से पैदल चलें तो इससे उनकी सेहत को ख़ासा लाभ होगा. अगर आहार की बात करें तो ऐसे लोगों को कम कैलरी और कम चर्बीयुक्त भोजन करना चाहिए. इनके अलावा, जंक फ़ूड, तरह-तरह के मिष्ठान, बेकरी के उत्पादों, काजू-किशमिश, घी, मक्खन, लाल मांस, मीठे युक्त पेय पदार्थ से परहेज करना चाहिए और फलों के ताज़ा रस को पीने से बचना चाहिए. इनकी एवज में ताज़ा फल, सलाद, सब्ज़ियां, अंकुरित अनाज़ का सेवन करना उत्तम है. सब्जियों से बने सूप, नारियल का पानी, स्किम किया गया छास, रसम व लाल चाय का सेवन किया जा सकता है जिससे कैलरी बढ़ने की आशंका नहीं रहती है.

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