जब पुलिस निरीक्षक ने कहा- उसे पुलिस सुरक्षा चाहिए, क्योंकि वकील उसे घूरता है
जज ने कहा क्या तुम लड़की हो..?
संवाददाता / मुंबई
राज्य मानवाधिकार आयोग के न्यायालय में आज एक मजेदार घटना देखने को मिली। जहां अपनी वर्दी का नाजायज फायदा उठा कर अपराध करनेवाले पुलिस निरीक्षक को आयोग ने जमकर फटकार लगाई। डरे हुए पुलिस निरीक्षक और जज के बीच जो रोचक और गंभीर बहस हुई। जिसे देखकर पूरे न्यायालय में हंसी का माहौल बन गया।
पूरा मामला कुछ इस प्रकार है कि माहिम पुलिस थाने के निरीक्षक सूर्यकांत कांबले के खिलाफ मानवाधिकार आयोग में कई लोगों ने शिकायत कर रखी थी। जिनमें से एक वरिष्ठ पत्रकार शैलेश जयसवाल ने यह आरोप लगाया था कि जोगेश्वरी पुलिस थाना में रहते हुए निरीक्षक कांबले ने उन्हें फर्जी रेप के आरोप में फंसाकर जेल भेजा था। जिसमें से वह निर्दोष बरी हुए। ऐसे में पुलिस कस्टडी के दौरान कांबले ने पत्रकार जायसवाल को निर्वस्त्र कर उनके साथ जमकर मारपीट की थी और केस को कमजोर बनाने के लिए उनके परिवार से डेढ़ लाख रुपए की मांग की थी। वहीं दूसरे मामले में पत्रकार सादिक बांबू ने भी यही आरोप लगाया कि कांबले के भ्रष्टाचार को उजागर करने के एवज में उन्हें फर्जी आरोप में जेल भेजा गया था और उन्हें भी केस से मुक्त करने के लिए 2 लाख रुपए मांगे थे। इतना ही नहीं बदले की भावना मन में रखते हुए इस अधिकारी ने सीनियर एडवोकेट नितिन सातपुते पर भी फर्जी छेड़छाड़ का मामला दर्ज कर उन्हें हवालात भेजने की कोशिश की और इस आरोप से मुक्त करने के एवज में वकील से रिश्वत के तौर पर ५ लाख रुपए मांगे थे। परंतु सबूत में मिले सीसीटीवी फुटेज ने अधिकारी के भ्रष्टाचार की पोल खोल दी। जिसके बाद मानवाधिकार आयोग ने लोगों की शिकायतों पर संज्ञान लेते हुए कांबले को समन भेज कर हर तारीखों पर बुलाना शुरू किया।
सोमवार के दिन आयोग में जब पत्रकार शैलेश जयसवाल के केस क्रमांक 1352/2015 में सुनवाई हो रही थी तब सीनियर एडवोकेट सातपुते पत्रकार जायसवाल के लिए पैरवी करने के लिए पहुंचे तब साथ में पत्रकार बंबोट भी अपनी बात रखने के लिए आयोग के न्यायालय में पहुंचे। अपने खिलाफ शिकायतों की बढ़ती तादाद को देखते हुए पुलिस निरीक्षक सूर्यकांत कांबले घबराकर कांपने लगा और न्यायालय को बयान देते समय उसकी जुबान भी डर के मारे लड़खड़ाने लगी थी। अदालत में साबित होते आरोपों की बौछार को देखने के बाद अपराधी कांबले का चेहरा देखने लायक था। क्योंकि न्यायालय में मौजूद सभी लोग कांबले को एक अपराधी के तौर पर घूर कर देख रहे थे।
सुनवाई खत्म होने के बाद भी जब कांबले अदालत में खड़ा रहा और बाहर जाने को तैयार नहीं हुआ तो आयोग के चेयरमैन केके तातेड ने उससे कारण पूछा। तब उसने जज से कहा कि जज साहब, मुझे पुलिस प्रोटेक्शन चाहिए, मुझे बचाओ, क्योंकि वकील सातपुते घूर के उसे देख रहे हैं, तब जज ने तपाक से उस अधिकारी से कहा कि वकील तुम्हें देख भी नहीं सकते क्या..? तुम्हें डरने की क्या जरूरत..? क्या तुम लड़की हो..? जज की इस बात को सुनते ही वहां और अदालत के बाहर मौजूद सभी लोगों ने जोर का ठहाका लगाया और न्यायालय में कांबले का मजाक उड़ता देख हंसी का माहौल बन गया।
इस घटना के चश्मदीद तथा एडवोकेट सातपुते के सहायक एडवोकेट दीपक जगदेव ने इस मामले की सुनवाई के बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि जब भ्रष्ट अधिकारी सूर्यकांत कांबले ने ना जाने कितने लोगों को फर्जी मामले में फंसा कर उन्हें जेल भेजा। तब उन्हें किसी की तकलीफ महसूस नहीं हुई। जब उनका भ्रष्टाचार उजागर हो चुका है। ऐसे में उन्हें जेल जाने का जो डर लग रहा है, वह लाजमी है। जब एक जिम्मेदार पुलिस अधिकारी मानवाधिकार के न्यायालय में खुद को पुलिस सुरक्षा देने की मांग करता है, तो यह काफी शर्मनाक है। ऐसे में जब इस तरह के अधिकारी खुद स्वयं सुरक्षा करने में सक्षम नहीं है, तब वे आम नागरिकों की क्या सुरक्षा कर सकेंगे? दरअसल उन्होंने नागरिकों की सुरक्षा को अपनी जिम्मेदारी मानने की बजाय लोगों को फर्जी मामलों में फंसाकर उनसे रिश्वत के रूप में मोटी रकम को बैठने को ही अपना लक्ष्य बनाया। जिसके कारण वे अब कानूनी शिकंजे में फंसते जा रहे हैं । अतः उनका नौकरी से बर्खास्त होकर जेल जाना तय है।
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