मुंबई। पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने जानवरों को व्यक्तित्व का दर्जा देने की मांग को लेकर विलेपार्ले स्थित जुहू में एकजुट होकर बैनरबाजी करते दुर्व्यवहार के खिलाफ नारे लगाते हुए लोगों का ध्यान आकर्षित किया.
कार्यकर्ताओं ने इस दौरान पशु दुर्व्यवहार के खिलाफ नारे लगाते हुए मानव हितों के लिए जानवरों के शोषण की कड़ी निंदा करते हुए लोगों को संदेश दिया. उन्होंने खाने के लिए, पहनावे के लिए, मनोरंजन के लिए और परीक्षण में पशुओं के साथ जो क्रूरता हो रहा है उस पर प्रकाश डाला. कार्यकर्ता हाथों में बैनर और तख्तियां लेकर प्रजातिवाद के बारे में जागरूकता बढ़ाने की कोशिश की.
वीगन कार्यकर्ता अवनी कारिया ने कहा की कुत्ते को मारने और बकरी को मारने या इंसान को मारने के बीच कोई नैतिक अंतर नहीं है. वे सभी समान रूप से पीड़ित हैं और दर्द महसूस करते हैं. खुशबू देसाई ने गोमांस और चमड़े के एक प्रमुख निर्यातक के रूप में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए इसके लिए डेयरी उद्योग की प्रथाओं को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने ऐसे देश में घोर पाखंड की ओर इशारा किया जो गाय को "माँ" कहता है और फिर उनके साथ बदतर व्यवहार करता है.
आयोजकों में से एक श्वेता सावला ने जानवरों की बुनियादी स्वतंत्रता जो कि उनका जन्मसिद्ध अधिकार है, को पहचानने की आवश्यकता को उत्साहपूर्वक व्यक्त किया. उन्होंने इन संवेदनशील प्राणियों की पीड़ा से लाभ कमाने की बेतुकी बात पर जोर दिया और समाज से जानवरों को आनंद की वस्तु के बजाय व्यक्तियों के रूप में देखने का आग्रह किया. और उन्होंने बोला कि कई सारे पीर रिव्यू रिसचर्स यह स्थापित कर चुका है कि इंसानों को स्वस्थ रहने के लिए पशु पदार्थ का जरूरत नहीं है.
आर्थिक प्रभाव के बारे में चिंताओं पर प्रतिक्रिया देते हुए कार्यकर्ता प्रिया मलयथ ने इस मुद्दे को सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण से देखने के महत्व पर जोर दिया.उन्होंने बाल श्रम की अस्वीकृति के साथ समानताएं दर्शाते हुए कहा की जब कोई सामाजिक न्याय का मुद्दा हो तो हमें पीड़ित के दृष्टिकोण से सोचना चाहिए. सरकार को पशुओं का शोषण जारी रखने के बजाय विकल्पों में निवेश करने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला.
रैली के दौरान "उनके शरीर, हमारे नहीं; उनके अंडे, हमारे नहीं; उनका दूध, हमारा नहीं" जैसे मार्मिक नारों से गूंज उठी. कार्यकर्ताओं ने सामाजिक प्राथमिकताओं में बदलाव का आह्वान करते हुए कहा कि जानवरों के साथ दुर्व्यवहार और शोषण को अब और नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए.
कार्यक्रम के आयोजकों ने समाज से पशु शोषण की असुविधाजनक वास्तविकता का सामना करने और एक ऐसे भविष्य की दिशा में काम करने का आग्रह करते हुए निष्कर्ष निकाला, जहां जानवरों को सुरक्षा, देखभाल, सम्मान और कानूनी "व्यक्तित्व" की स्थिति के योग्य संवेदनशील प्राणी के रूप में पहचाना जाता है.
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