निर्देशक मुकुल विक्रम की फिल्म 'आखिर पलायन कब तक' एक संवेदनशील और ज्वलनशील मुद्दे पर बनी फिल्म है।
उत्तराखंड पर आधारित यह फिल्म लगती तो वहां की पलायनवाद पर है जैसा कि वहां के स्थानीय लोग दिल्ली, मुंबई के अलावा विदेशों में बस गए हैं। लेकिन फिल्म देखने के बाद पता चलता है कि यह फिल्म दो धर्मों के बीच की लड़ाई है जहां कट्टरपंथी लोग भले लोगों का जीना हराम कर देते हैं। फिल्म की कहानी मुस्लिम बाहुल्य इलाके पर रहने वाले हिन्दुओं पर हो रहे प्रताड़ना को दर्शाती है। फिल्म की कथा में वास्तविकता की छाप है। एक विशेष धर्म के लोगों का अन्य धर्म के लोगों के प्रति किये गए कटु व्यवहार का वर्णन है। और भारत में पारित मुस्लिम वफ्फ बोर्ड की नीतियों के दुरुपयोग का भी जिक्र है।
फिल्म की शुरुआत में ही निर्देशक ने सस्पेन्स और थ्रिल डालने की कोशिश की है फिल्म को देखने पर लगता है कि यह शायद कोई मर्डर मिस्ट्री कहानी है। लेकिन जैसे ही कहानी आगे बढ़ती है कहानी का मूल मुद्दा ज्ञात हो जाता है। इंस्पेक्टर सूरज शर्मा और उसकी टीम हवलदार अकरम और राजेश नेगी को खबर मिलती है कि उन्हें एक सिर कटी लाश मिली है। पुलिस पूरे छानबीन में जुट जाती है और उन्हें मालूम होता है कि पास में ही रहने वाले दुकानदार सुनील बिष्ट का पूरा परिवार लापता है। पुलिस की छानबीन जारी रहती है तभी एक और लाश मिलने की खबर आती है। यह मंदिर का पुजारी था किंतु वह केवल मूर्छित था लोग उसे मृत समझ रहे थे। पुजारी के होश में आने के बाद इंस्पेक्टर सूरज को एक विशेष धर्म द्वारा फैलाये षडयंत्र के बारे में परत दर परत जानकारियां मिलती है इसी इलाके का रसूकदार और बड़े ओहदे वाला बदरुद्दीन कुरैशी कहीं ना कहीं इस घटना के पीछे मजबूत ढाल बनकर खड़ा है। और साथ ही यहीं से एक परिवार के गुम होने की सच्चाई ज्ञात होती है। इन सभी घटना में पत्रकार मुकेश यादव भी अपना पूर्ण सहयोग देता है। क्या वाकई इंस्पेक्टर सूरज सच्चाई तक पहुँच पाता है? क्या पीड़ित परिवार को न्याय मिला और आखिर वह सिर कटी लाश किसकी थी ? इन रहस्य भरे प्रश्नों का उत्तर फिल्म देखकर ज्ञात होगा।
फिल्म की कहानी बेहद उम्दा और मार्मिक है जो सत्य घटना पर आधारित भी है।
फिल्म में केवल एक ही बैकग्राउंड गीत है जो फिल्म में पात्रों की मार्मिकता को बीच बीच में दर्शाते रहता है। फिल्म की पटकथा मजबूत है लेकिन निर्देशन कहानी को रोचक बनाने में चूक गए। द कश्मीर फाइल्स फिल्म की तरह यह भी सत्य घटनाओं से प्रेरित है लेकिन उस फिल्म वाली संवेदना की कमी इस फिल्म में साफ दिखाई पड़ती है।
फिल्म में राजेश शर्मा, भूषण पटियाल, गौरव शर्मा, चितरंजन गिरी, धीरेंद्र द्विवेदी और सोहनी कुमारी ने अभिनय किया है।
कई बड़ी फिल्मों में अपने अभिनय से लोगों का दिल जीतने वाले अनुभवी अभिनेता राजेश शर्मा ने एक बार फिर अपनी उपस्थिति से सबका ध्यान आकर्षित किया है। अन्य कलाकारों ने भी अपने अभिनय कौशल का ठीक ठाक प्रदर्शन किया है।
मनोरंजन की चाह रखने वाले दर्शकों को इस फिल्म से निराशा होगी लेकिन वे सोचने पर मजबूर हो सकते हैं।
- संतोष साहू
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