गायत्री साहू / मुंबई
महाराष्ट्र सरकार की आरोग्यनिधि सेवा संस्था के कर्मठ एवं समाजसेवक अक्षय दयानंद सोनकांबले मुंबई में गोरेगांव पूर्व संतोष नगर के रहवासी हैं, इनका जन्म और शिक्षा मुम्बई में हुआ है। परोपकारी स्वभाव के अक्षय सांताक्रुज, विलेपार्ले, अंधेरी, जोगेश्वरी, गोरेगांव के आसपास के क्षेत्र में जितने भी जरूरतमंद लोग हैं उनका दिल खोलकर सहायता करते हैं। मुम्बई ही नहीं सुदूर क्षेत्रों के लोगों तक भी वे अपनी सहायता पहुंचाते हैं। यह काम अक्षय पिछले सात आठ सालों से कर रहे हैं और अभी तक लगभग बारह सौ से अधिक लोगों तक वह सहायता पहुंचा चुके हैं। वह आर्थिक रूप से जरूरतमंद लोगों तक अन्न और फल सब्जियां पहुंचाकर, रुग्ण और असहाय लोगों को स्वास्थ्य चिकित्सा मुहैया कराकर, छोटे बच्चों को कपड़े और उनकी शिक्षा की आवश्यक वस्तुएं प्रदान कर सहायता करते हैं। आदिवासी बस्तियों में प्रत्येक रविवार को भोजन या खिचड़ी बांट कर उनकी सहायता करते हैं। इसके लिए वह स्थानीय लोगों की मदद भी लेते हैं और साथ में सम्मिलित होकर स्वयं भी भोजन ग्रहण करते हैं। इन सभी कार्यो में उनके परिवार का भरपूर सहयोग उन्हें मिलता है। अक्षय के भीतर यह सेवा और परोपकार की भावना का उदय उन्हें उनके पिता दयानंद सोनकाम्बले से मिला है। अक्षय अपने पिता को अपना आयडल मानते हैं। उन्हीं की तरह परोपकार और सेवा करना चाहते हैं। अक्षय बताते हैं कि जब से वह इस जनसेवा अभियान से जुड़े हैं तब से उनकी आर्थिक सहायता केवल उनके पिता ने ही कि है और वे अक्षय को कहते हैं कि जितना भी हो सके वह मदद करेंगे किसी अन्य से आर्थिक मदद या पैसे ना लें। यदि कोई सेवा हेतु आर्थिक मदद देता भी है तो यह धन केवल सेवा के लिए प्रयोग करें अपने निजी स्वार्थ के लिए नहीं। अक्षय के पिता एक मध्यमवर्गीय कामगार व्यक्ति हैं किंतु परोपकारी कार्यों हेतु वे सदैव तत्पर रहते हैं तथा अपने सामर्थ्य अनुसार वंचितों की सहायता में लगे रहते हैं।
अक्षय अपने पिता का अनुसरण करते हैं। अक्षय अपने बारे में बताते हैं कि उनके अंदर लोगों के लिए सहयोग की भावना का उदय तब हुआ जब वे सातवीं या आठवीं कक्षा में पढ़ते थे। उस समय उनकी माँ के कानों में तेज दर्द और चक्कर की शिकायत थी। उनके पिता सुबह उनकी माँ को लेकर अस्पताल जाते और वापस लौटते हुए शाम या रात हो जाती थी। यह देख अक्षय यह सोचते कि आखिर सरकारी अस्पताल में इतना समय क्यों लग जाता है। फिर जब वे एक बार अपनी माँ को जोगेश्वरी स्थित क्रोमा अस्पताल (बालासाहेब ठाकरे हॉस्पिटल) लेकर गए तो वहां पहुंचते ही उनकी माँ को चक्कर आ गया। माँ की हालत देख अक्षय ने वार्डबॉय से अपनी माँ के लिए कुर्सी मांगी तब वार्डबॉय ने उन्हें अनदेखा कर दिया। तभी वहां सफाई कर्मचारी एक महिला ने कुर्सी का इंतजाम कर उन्हें दिया। इलाज कराने के बाद अक्षय पुनः वार्डबॉय से मिले और पूछा कि आपने सहायता क्यों नहीं की तो इस पर वॉर्डबॉय ने तीखा तंज कसते कहा कि आपकी माँ क्या झांसी की रानी है यदि सुविधा चाहिए तो प्राइवेट अस्पताल जाओ यहाँ क्यों आते हो। वॉर्डबॉय की बात अक्षय को बहुत बुरी लगी और उसने सोचा कि वह किसी और को ऐसी तकलीफ से नहीं गुजरने देंगे। फिर वह अपना जन्मदिन मनाने 'दया अनाथाश्रम' गए वहाँ उन्होंने अन्नदान किया और उनका हाल पूछा तभी कुछ बीमार लोगों ने अपनी व्यथा बताई और यह भी बताया कि बीएमसी अस्पतालों में इलाज के लिए जाने पर कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है लंबी लाइन लगाना पड़ता है। जिसका अस्पताल में पहचान हो, उसी का सही इलाज हो पाता है। उनकी यह बात सुन अक्षय को लगा कि लोग बीएमसी को लेकर जो बोल रहे हैं वह सही नहीं है और वहीं से अक्षय ने ठान लिया कि सरकारी अस्पताल में अब गरीब और जरूरतमंदों को कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ेगा। इसके लिए अक्षय पूरी जी जान से जुड़े, लोगों से संपर्क बनाया, सारी जानकारियां हासिल की, नेता, एनजीओ, नगरपालिका अधिकारियों, खासदार आदि से संपर्क किया, ताकि बीमार व्यक्तियों के लिए बीएमसी में इलाज करवाना आसान हो जाये और सरकारी अस्पतालों को लेकर लोगों में जो धारणा बनी है वह दूर हो और सभी रोगियों को आसानी से सहायता मिल सके। अक्षय ने सबसे पहले एक लकवाग्रस्त व्यक्ति की सहायता की और वहीं से जनसेवा का काम जो शुरू हुआ वह आज तक चल रहा है और इस सेवा चैन को अक्षय दूर दराज के लोगों तक लेकर जाना चाहते हैं। वह बीमार व्यक्ति को सरकारी अस्पताल में उचित डॉक्टर से मिलाना, बीमारी के लिए उन्हें सरकारी सहायता की जानकारी देना, जरूरतमंदों को एनजीओ या सरकार की ओर से सहायता दिलाना, कम लागत में इलाज की व्यवस्था, कैन्सर मरीजों को कीमो और दवा प्राप्त करने हेतु कम लागत में इलाज प्राप्त करने के उपाय बताना जैसे सेवाभाव का कार्य करते हैं।
अक्षय कहते हैं कि अधिकांश लोगों को डॉक्टर और सरकारी सुविधाओं का ज्ञान ही नहीं है। सरकारी अस्पताल में कम लागत में ऑपरेशन, एमआरआई, सोनोग्राफी, एक्सरे और खून जांच आदि हो जाती है फिर भी लोग धैर्य नहीं रखते और अधिक लागत में अपना इलाज और जांच कराते हैं। वह सदा लोगों की सहायता के लिए तत्पर हैं और किसी भी बीमार व्यक्ति को इलाज हेतु आर्थिक सहायता चाहिए तो वह किसी बीएमसी अस्पताल में कम मेहनत और कम लागत में सहायता पहुंचाएंगे। जो आर्थिक रूप से सम्पन्न नहीं उनकी आर्थिक मदद भी करेंगे। अक्षय यह कार्य सेवा भाव से करते हैं, आय साधन के लिए नहीं। उनका कहना है कि जो तकलीफ़ उन्होंने सही वह किसी और को भोगना ना पड़े।
इस खबर पर अपनी राय नीचे कमेंट करे।
No comments:
Post a Comment