Friday, 5 April 2024

यूपी के गैर मान्‍यता प्राप्‍त मदरसों के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई : 17 लाख छात्र इस फैसले से प्रभावित हुए

 

मि. प. संवाददाता / उत्तर प्रदेश 

त्तर प्रदेश में करीब 25 हजार मदरसे हैं. इनमें 16500 मदरसे उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त है, उनमें से 560 मदरसों को सरकार से अनुदान मिलता है. इसके अलावा राज्य में साढ़े आठ हजार गैर मान्यता प्राप्त मदरसे हैं.

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच द्वारा यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 को असंवैधानिक करार दिए जाने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. उत्‍तर प्रदेश मदरसा एक्ट को रद्द करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मदरसा बोर्ड की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि हाईकोर्ट का अधिकार नहीं बनता कि इस एक्ट को रद्द करे... 17 लाख छात्र इस फैसले से प्रभावित हुए हैं. वहीं, करीब 25000 मदरसे प्रभावित हुए हैं. ये लगभग 125 साल पुराना है, 1908 से मदरसा रजिस्टर हो रहे हैं.

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूण, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की. इस दौरान सिंघवी ने कहा, "आज लोकप्रिय गुरुकुल हैं, क्योंकि वे अच्छा काम कर रहे हैं. हरिद्वार, ऋषिकेश  में कुछ बहुत अच्छे गुरुकुल हैं. यहां तक कि मेरे पिता के पास भी उनमें से एक की डिग्री है... तो क्या हमें उन्हें बंद कर देना चाहिए और कहना चाहिए कि यह हिंदू धार्मिक शिक्षा है? क्या यह 100 साल पुराने कानून को खत्म करने का आधार हो सकता है?"

सिंघवी ने कहा, "यदि आप अधिनियम को निरस्त करते हैं, तो आप मदरसों को अनियमित बना देते हैं और 1987 के नियम को नहीं छुआ जाता. हाईकोर्ट का कहना है कि यदि आप धार्मिक विषय पढ़ाते हैं, तो यह धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि धार्मिक शिक्षा का अर्थ धार्मिक निर्देश नहीं है."

सिंघवी ने कहा, "सिर्फ इसलिए कि मैं हिंदू धर्म या इस्लाम आदि पढ़ाता हूं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि मैं धार्मिक शिक्षा देता हूं. इस मामले में अदालत को  अरुणा रॉय फैसले पर गौर करना चाहिए. राज्य को धर्मनिरपेक्ष रहना होगा, उसे सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए और उनके साथ समान व्यवहार करना चाहिए. राज्य अपने कर्तव्यों का पालन करते समय किसी भी तरह से धर्मों के बीच भेदभाव नहीं कर सकता. चूंकि शिक्षा प्रदान करना राज्य के प्राथमिक कर्तव्यों में से एक है,
इसलिए उसे उक्त क्षेत्र में अपनी शक्तियों का प्रयोग करते समय धर्मनिरपेक्ष बने रहना होगा. वह किसी विशेष धर्म की शिक्षा, प्रदान नहीं कर सकता या अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग शिक्षा प्रणाली नहीं बना सकता."

मदरसों की तरफ से वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि ये संस्थान विभिन्न विषय पढ़ाते हैं, कुछ सरकारी स्कूल हैं, कुछ निजी, यहां आशय यह है कि यह पूरी तरह से राज्य द्वारा सहायता प्राप्त स्कूल है, कोई धार्मिक शिक्षा नहीं. यहां कुरान एक सब्जेक्ट के तौर पर पढ़ाया जाता है. हुजैफा अहमदी ने कहा कि धार्मिक शिक्षा और धार्मिक विषय दोनो अलग हैं, इसलिए हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगानी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा कि क्या हम यह मान लें कि राज्य ने हाईकोर्ट में कानून का बचाव किया है...? इस पर यूपी सरकार की तरफ से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि हमने हाईकोर्ट में बचाव किया था, लेकिन हाईकोर्ट द्वारा कानून को रद्द करने के बाद हमने फैसले को स्वीकार कर लिया  हैं. जब राज्य ने फैसले को स्वीकार कर लिया है, तो राज्य पर अब कानून का खर्च वहन करने का बोझ नहीं डाला जा सकता.

क्या मदरसा अधिनियम के प्रावधान धर्मनिरपेक्षता की कसौटी पर खरे उतरते हैं, जो भारत के संविधान के मूल ढांचे का एक हिस्सा है? यूपी सरकार ने कहा, "ये मदरसे खुद सरकार से मिलने वाली सहायता पर चल रहे हैं, इसलिए कोर्ट को गरीब परिवारों के बच्चों के हित में ये याचिका खारिज कर देनी चाहिए. यह धारणा बनाने की कोशिश की जा रही है कि धार्मिक विषय अन्य पाठ्यक्रम के साथ हैं.वे गलत जानकारी दे हैं."

यूपी सरकार की तरफ से ASG नटराज ने कहा कि मदरसे चल रहे हैं, तो चलने दें... लेकिन राज्य को इसका खर्च नहीं उठाना चाहिए. छात्रों को शैक्षणिक सत्र समाप्त होने पर ही प्रवेश दिया जाना चाहिए. इसमें सामान्य विषयों को वैकल्पिक बनाया गया है. क्लास 10 के छात्रों के पास एक साथ गणित, विज्ञान का अध्ययन करने का विकल्प नहीं है. हाईकोर्ट के सामने ये छिपाया गया हैं कि धार्मिक शिक्षा दी जाती है. फिजिक्स, मैथ, साइंस जैसे मुख्य विषय वैकल्पिक होने से ये छात्र आज की दुनिया में पिछड़ जाएंगे. किसी भी स्तर पर धर्म शामिल होना एक संदिग्ध मुद्दा है. सवाल किसी डिग्री का नहीं है, उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत तथ्यों में मैं खुद को यह कहने के लिए राजी नहीं कर सका कि उच्च न्यायालय का आदेश गलत था. हम धर्म के जाल में फंस गए हैं. केंद्र ने हाईकोर्ट में कानून का बचाव नहीं किया था."

बता दें कि उत्तर प्रदेश में करीब 25 हजार मदरसे हैं. इनमें 16500 मदरसे उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त है, उनमें से 560 मदरसों को सरकार से अनुदान मिलता है. इसके अलावा राज्य में साढ़े आठ हजार गैर मान्यता प्राप्त मदरसे हैं.

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