Saturday, 6 April 2024

एक लेखिका की आपबीती 'द लॉस्ट गर्ल'

फिल्म समीक्षा - द लॉस्ट गर्ल
बैनर - एडमेक इंडिया मीडिया प्राइवेट लिमिटेड, ए आर फिल्म्स, ए आर स्टूडियो
निर्माता निर्देशक - आदित्य रानोलिया
कलाकार - प्राची बंसल, अरोनिका रानोलिया, भूपेश सिंह, पूनम जांगड़ा, नवीन निषाद, रवीश सिंह व अन्य
वितरक - पैनोरमा स्टूडियोज इंटरनेशनल लिमिटेड

एक लेखिका अपनी आपबीती को किताब द लॉस्ट गर्ल के माध्यम में जन जन तक पहुंचाती है। लेखिका सुहानी इस कहानी की केंद्रीय पात्र है। 
द लॉस्ट गर्ल फिल्म में एक ऐसी लड़की की कहानी है जिसके माता पिता और भाई की एक कार एक्सीडेंट में मृत्यु हो जाती है। सुहानी नाम की वह बच्ची उस जानलेवा दुर्घटना में बच जाती है। फिर उस अनाथ बच्ची को हरियाणा हांसी गांव के एक निःसंतान किसान परिवार गोद ले लेता है। किसान रामसिंह मलिक और उसकी पत्नी अंग्रेजो उस बच्ची को सगी औलाद से भी ज्यादा प्यार देते हैं। सुहानी पढ़ाई में बहुत होशियार रहती है। गांव में सुहानी की चाची अनोखी एक धूर्त किस्म की महिला है और उसकी नजर अपने जेठजी रामसिंह की जायदाद पर रहती है लेकिन रामसिंह द्वारा सुहानी को गोद लेने पर उसका सपना चकनाचूर होते दिखता है। फिर वह सुहानी को रास्ते से हटाने के लिए अपने आवारा बेटे काले को शहर से बुला लेती है। काले के घटिया कारनामें से रामसिंह का बहुत नुकसान होता है फिर भी वह बड़ा दिल रखते हुए अपने भाई की औलाद को अपना समझते हुए क्षमा कर देता है। कुछ साल बाद सुहानी पर काले एक बार फिर हमला करता है लेकिन रामसिंह के हत्थे चढ़ जाता है, उसकी जमकर पिटाई होती है और फिर पुलिस पकड़ कर ले जाती है। सुहानी के लिए एक योग्य वर तलाश कर ब्याह कर देते हैं। सुहानी बचपन से एक दर्दनाक सपने से घबराती है। उसे पता चलता है कि वह अनाथ है फिर किसी तरह उसे पता चलता है कि उसके असली माता पिता का घर दिल्ली में है तो वह उनकी खोज में बेतहाशा निकल पड़ती है। उसके पीछे उसका पति भी चल पड़ता है।
अब आगे क्या होता है, क्या सुहानी को उसके असली माता पिता मिल पाते हैं या वह पालन पोषण करने वाले माता पिता के पास वापस आ जाती है ?
इन सब प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए फिल्म देखनी पड़ेगी।
यह फिल्म एक मार्मिक चित्रण है जिसकी साधारण सी कहानी दिल को छू जाती है। फिल्म कहीं कहीं ढीली ढाली पड़ती नजर आती है। कलाकारों ने बढ़िया प्रदर्शन किया है। इस फिल्म के माध्यम से गांव देहात को देखना शहरी लोगों के लिए एक नया अनुभव होगा। सीमित बजट वाली इस फिल्म में वैसे तो कई कमियां है लेकिन आम दर्शक के रूप में उसे नजरअंदाज करके देखें तो भावनात्मक जुड़ाव महसूस कर पाएंगे।
फिल्म को मिलते हैं तीन स्टार

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